और नकाब उतर गया
और नकाब उतर गया


इतने दिनों के एसोसिएशन में लगने लगा था कि हम एकदूसरे को अच्छी तरह से जानते है।परंतु यह भ्रम ही था शायद।क्योंकि बहुत सी चीजें आज नजर आ रही थी।बहुत पहले से भी सब समझ आ रहा था, पर मेरा भोला मन उनको मानने को तैयार ही नही होता था।लोगों ने समय समय पर directly- indirectly hint भी देने की कोशिश की परन्तु हर बार मैं उनके intentions को ही question करती रही।
लेकिन आज सब कुछ आईने की तरह साफ हो गया।मन मे पीड़ा हुई कि जिसे एक अच्छा दोस्त,एक बड़ा भाई और बहुत बार एक गाइड की तरह मान दिया था,वह नकाब पहन कर बैठा हुआ बहुत ही ordinary आदमी है।जिसे मैंने अपने मन मे बेवजह बहुत आदर और एक ऊँचा स्थान दिया था।
शायद नकाब पहनने वाले व्यक्ति की एक्टिंग ज्यादा खूबसूरत थी या फिर मैं ही बेवकूफ़ थी जो उस नकाब को इतने दिनों से पहचान नही सकी थी ....