अप्रैल फूल कौन ?
अप्रैल फूल कौन ?
बात बड़ी पुरानी है। कॉलेज में रितिका के बडे़ ही दीवाने हुआ करते थे। कॉलेज के दूसरे ही साल में थी वह पर कक्षा के साथियों के अतिरिक्त सीनियर भी किसी न किसी बहाने आसपास मँडराते थे। यहाँ तक कि पहले साल वाले जूनियर भी मैम मैम करके अक्सर टकरा जाते। रितिका इस सबसे अन्जान नहीं थी, एक तो सुन्दर उस पर रईस पिता की सन्तान, वह अपने आपको जन्नत की हूर से कम नहीं समझती थी। गुरूर इस हद तक बढ़ गया कि अपने सामने किसी को कुछ समझती ही नहीं थी।
वैसे तो लड़कियाँ मन ही मन जलती थीं उससे पर उसके साथ रहने से उन्हें भी फायदे दिखते थे अतः रितिका की लड़कियों से भी खासी दोस्ती थी अब यह अलग बात है कि दोस्तों में सच्चा या हितैषी कहने लायक एक भी नहीं आया था उसके खाते में, पर दिखावे की आदी रितिका को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था। उसे इन दिखावटी दोस्तों का साथ पसंद था।
उन्हीं दिनों कॉलेज में एक नये लड़के का आगमन हुआ था। किसी दूसरे शहर से शिफ्ट होने की वजह से उसने सेशन के बीच में ही सेकंड ईयर में दाखिला लिया था। वह बहुत मेधावी था और अच्छे नंबरों की वजह से एडमिशन में कोई परेशानी भी नहीं हुयी। परेशानी तो रितिका को हुयी जब सुमित ने उसे कोई भाव ही नहीं दिया। वह अक्सर अपने ग्रुप के साथ सुमित से छेड़छाड़ करती परन्तु उस पर कोई फर्क ही नहीं पड़ता था उलटा एक दिन उसने रितिका को पढ़ाई पर ध्यान देने की नसीहत दे डाली। इस बात पर बाकी के मित्रों ने रितिका का मजाक बनाना शुरू कर दिया। रूपगर्विता रितिका से सहन नहीं हुआ और उसने बदला लेने की ठानी। उसने एलान कर दिया "आज से ठीक एक महीने बाद मैं सुमित को प्रपोज करुँगी।"
सबने अविश्वास जताया परन्तु रितिका तो ठान चुकी थी। उसने मित्र मंडली से आश्वासन लिया कि सुमित को इस बात का पता नहीं लगने देंगे। अब तो वह सुमित के आगे पीछे ही घूमने लगी। जहाँ जहाँ वह जाता रितिका वहीं मौजूद होती। प्रारंभ में सुमित को यह संयोग लगा। रितिका मोहक मुस्कान बिखेर उसका स्वागत करती। वह पढ़ाई पर ध्यान देने लगी थी। अक्सर कुछ समझ में नहीं आने पर सुमित से सहायता माँगती। सुमित के पूछने पर उसने बताया कि जो उस दिन सुमित ने कहा उसे सुनकर वह सच में बदल गयी है। स्वभाव से भोला सुमित उस पर पूरी तरह विश्वास करने लगा था। मीनाक्षी भी सुमित की मित्र थी और उसी की तरह मेधावी भी। उसने सुमित को आगाह करने का प्रयास भी किया परन्तु वह उसे भी यही कहता कि रितिका बदल गयी है। यही नहीं वह रितिका के प्रति आकर्षण भी महसूस करने लगा था।
उस दिन पहली तारीख थी, खाली पीरियड था। कक्षा में अगले महीने से शुरू होने वाले इम्तिहान के बारे में बातें चल रही थीं कि रितिका सुमित को प्यार से देखते हुये अचानक बोल उठी
"मेरा बस चले तो इम्तिहान के बाद शादी ही कर लूँ। पर जिससे करनी है वह सेकंड ईयर के बाद करेगा नहीं"
सुमित ने अचकचा कर उसे देखा वह उसे ही देख कर मुस्कुरा रही थी। वह आगे बोली "चलो मैं उम्र भर तुम्हारा इन्तज़ार कर लूँगी पर क्या तुम मुझसे शादी करोगे?"
इस अदा पर कौन न मर जाता सुमित तो वैसे भी भोला था। सब लोग सुमित को बधाइयाँ दे रहे थे और उसकी किस्मत का गुणगान कर रहे थे। सुमित के पैर जमीन पर नहीं थे। रितिका सुमित को लेकर क्लास रूम से बाहर आ गयी। उस दिन दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़ शहर भर में घूमते फिरे।
अगले दिन सुमित हाथ में लाल गुलाब लिये कॉलेज पहुँचा। रितिका ने सबके सामने प्रपोज करने की हिम्मत दिखाई थी। उसे भी कुछ ऐसा करना था। दिमाग में हजार तरह के रोमांटिक आइडियाज चल रहे थे।
कक्षा में पहुँच कर उसने पाया रितिका पहले से आ चुकी थी और मित्र मंडली में घिरी बैठी थी। सुमित खुश हुआ। वह सबके सामने ही गुलाब देना चाहता था।
जैसे ही गुलाब हाथ में लेकर झुक कर रितिका की ओर बढ़ाया और कुछ कहने के लिये मुँह खोला एक जोरदार ठहाका गूँज उठा। रितिका ने फूल लेकर तोड़ कर पैरों से मसल दिया और बोली
"शक्ल देखी है अपनी मिस्टर आशिक?"
"तो कल वह सब क्या था?" सुमित मुश्किल से कह सका
"कल अप्रैल फूल था मिस्टर फूल! तुम सोच भी कैसे सकते हो मैं तुम्हें घास भी डालूँगी। शादी तो दूर की बात है।"
उन ठहाकों में कितना अहंकार, कितना तिरस्कार था सुमित का निश्छल मन सहन नहीं कर सका। किसी तरह मीनाक्षी ने उसे सँभाला और घर पहुँचाया।
वह इतनी बुरी तरह टूटा कि कॉलेज आना ही छोड़ दिया।
कभी कभी मीनाक्षी से पूछना भी चाहा रितिका ने पर उसकी आँखों में अपने लिये नफरत देख कर पूछ न सकी।
आज अचानक जब रितिका के पति ने अपने बॉस को सपरिवार अपने घर भोजन पर आमंत्रित किया तो सुमित और मीनाक्षी को देख कर चौंकी ही नहीं अपने पति की जॉब को लेकर डर भी गयी वह।
सुमित ने उसका डर भाँप कर उसके पति के सामने ही उससे कहा
"डरिये मत मिसेज कोहली! आपने जो उस दिन किया उसकी वजह से मीनाक्षी जैसी सच्ची दोस्त पत्नी के रूप में मिली। जिसकी वजह से मैं अवसाद से निकल कर पुनः अपने लक्ष्य की ओर बढ़ सका और आज आपके सामने हूँ। और वह कॉलेज मैंने आपसे डर कर नहीं बल्कि नकारात्मक लोगों से मुक्ति पाने को छोड़ा था। तो मैं तो आपका अहसानमंद हूँ , किसी तरह का कोई बदला नहीं लूँगा।"
रितिका का पति रितिका को सशंकित दृष्टि से देख रहा था और वह धरती में गड़ी जा रही थी आज वह स्वयं को अप्रैल फूल मान रही थी। मीनाक्षी ने मुस्कुरा कर सुमित का हाथ पकड़ कर गर्व से थपथपा दिया।