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Sangeeta Agarwal

Children Stories

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Sangeeta Agarwal

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अपनों के संग, जिंदगी के रंग

अपनों के संग, जिंदगी के रंग

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अंकिता आजकल बहुत खुश रहने लगी थी,हर वक्त गुनगुनाती,सपनों में खोई खोई सी रहती,उसकी माँ रीता को आश्चर्य होता कि ये इस लड़की को आजकल क्या हो गया है,कल तक छोटे बहिन भाइयों से झगड़ने वाली अंकिता,अचानक इतनी संजीदा कैसे हो गई।


एक दिन,माँ को इसका राज पता चल ही गया,उस दिन अंकिता सिर दर्द कहके सोई हुई थी अपने कमरे में,जब शाम को बहुत देर हो गई तो उसकी माँ उसके कमरे में गईं जहाँ उसने सुना-वो किसी लड़के से बात कर रही थी फोन पर,अचानक से अपनी मां को आया देख वो हड़बड़ा गई लेकिन मां से राज़ छिपा न पाई।


माँ के हाथों के तोते उड़ गए जब उसे पता चला कि वो लड़का दूसरी जात का है,वो जानतीं थीं कि उसके पापा,चाचा और दादी पुराने रूढ़िवादी विचारों के हैं,वो इसे कभी न स्वीकारेंगे।


एक तरफ बेटी की ज़िद और दूसरी तरफ परिवार के कड़े नियम,मां का सिर चकरा गया,अंकिता को समझाने की कोशिश की पर कोई फायदा न दिखा।

ऐसी बातें ज्यादा दिनों छिपती नहीं,घर मे जब ये बातें आम हुई तो मानो कोहराम मच गया।सबके गुस्से का शिकार बनी अंकिता की माँ।कैसी मां है जो अपनी बच्ची का ख्याल भी न रख सकी, हम दस दस बच्चे पाल लेते थे,दादी गुस्से से बोलीं।


"अरे अम्मा,आजकल की औरतों में वो बात कहां, इन्हें तो हर चीज बनी बनाई तैयार चाहिए और काम,देखभाल में सिफर होती हैं",उसके पति ने कहा तो वो तिलमिला गई।


घर की हज़ारों बंदिशें और डांट फटकार भी अंकिता को रोक न पाई और वो बागी हो उठी।

"अम्मा,मुझे ज्यादा परेशान न करो,मैं बालिग हूँ,मुझे इस शादी करने से आप नहीं रोक सकते।"

उसके पिता ने आखिरी अस्त्र फेंका-"इतनी जिल्लत मैं बर्दाश्त न कर पाऊंगा,अगर तू न मानी तो मैं और तेरी मां सुसाइड कर लेंगे।"


अंकिता,प्यार में अंधी ही हो गयी थी,वो अपने मित्र सुनील के साथ भाग गई और कोर्ट मैरिज कर ली।


सुनील,शहर के बड़े व्यवसायी की इकलौती औलाद था,उसके घर मे भी बहुत विरोध हुआ इस शादी का लेकिन इकलौते बेटे को खोने के डर ने उनके मुंह पर ताले जड़ दिए ,एक तरह से जबरदस्ती ही उन्होंने अंकिता को स्वीकार लिया ।शुरू शुरू में,अंकिता को वहां सामंजस्य बैठाने में बहुत दिक्कत आई,एक तो उन लोगों की मर्जी के खिलाफ वो यहां आई थी ,दूसरे उन लोगो के रीति रिवाज,खान पान सब अलग थे।


एक साल होते होते,वो एक स्वस्थ,सुन्दर बेटे की माँ बन गई।पोते का मुंह देखकर ,सुनील के माँ पापा थोड़े नरम पड़े लेकिन अब तक अंकिता ने अपने मन में खटास भर ली थी इनके लिये,सुनील ने उसे समझने की कोशिश भी की पर उसने एक न सुनी।उसमें आग में घी डालने का काम उसकी माँ ने किया,उसने कभी अपनी बेटी को सही सीख नहीं दी।


अब आये दिन,अंकिता अपनी ससुराल में लड़ाई झगड़ा करती।


एक दिन,उसकी सास बच्चे को खिला रही थीं कि वो कुर्सी से गिर गया,अंकिता ने सारा घर सिर पर उठा लिया,सुनील को रो रोकर बताया-आपकी माँ ने हमारे गोलू को गिरा दिया,देखो कितनी चोट आई है।बेचारी मां इस आरोप से बिलबिला गई,बड़ी उम्मीद से बेटे को देखा कि वो उनके पक्ष में कुछ कहेगा लेकिन वो तो हमेशा की तरह आज भी अपनी पत्नि की हां में हां मिलने लगा।

पहली बार आज शकुंतला देवी की आंखों में आंसू आ गए,उस समय चुप रहीं लेकिन रात में अपने पति से कहा-अब हम यहां नहीं रहेंगेहम लोग अपने गांव वाले मकान में चलते हैं,वो रोते हुए बोलीं।


"कैसी बात करती हो,ये हमारा मकान है,तुमने कितने चाव से इसे बनाया था,हमारा इकलौता बेटा है सुनील,उसे छोड़ कहाँ जाएंगे?बहु नादान है,समझ जाएगी सब।"


"नहीं ,मुझे यहां नहीं रहना,उसे परिवार की,बड़े बूढों की कोई परवाह नहीं,मैं यहां नहीं रह सकती।"


"फिर हमारा बेटा, वो क्या कहेगा"...वो बोले।


"यही तो अफसोस है,वो अपनी जोरू का गुलाम है,सिर पकड़के रोयेगा एक दिन इसी के साथ।"

और फिर वो दोनों अपना घर छोड़ चले गए,सुनील और अंकिता ने जिस तरह औपचारिक रूप से उन्हें मना किया उससे साफ पता लग रहा था कि वो भी यही चाहते थे जैसे।


अंकिता तो फिर भी पराई थी पर सुनील के व्यवहार ने उनका दिल तोड़ दिया,उन्हें लगा कि उनकी परवरिश में जरूर कोई कमी रह गई थी जो ऐसा बेटा बना।अंकिता,अब बहुत खुश थी,उसे जरा अहसास नही था कि उसे अपने बूढ़े सास ससुर को उनके इकलौते बेटे से अलग नहीं करना चाहिए था।ये एक पाप था जो उसने जाने अनजाने अपने सिर ओढ़ लिया।उसके सास ससुर,बहुत उदार दिल के थे जो अपने बेटे की खुशी के लिये चुपचाप उसकी जोन्दगी से निकल गए।

जिस दिन से वो लोग गए,सुनील कुछ बीमार रहने लगा था,शुरू में,अंकिता ने इस बात को गम्भीरता से न लिया,वो अब बहुत आज़ादी महसूस करती,बहुत घूमी वो सुनील और अपने बच्चे के साथ,सारे आस पास के पहाड़ी स्थलों पर।लेकिन बाहर की चीजें खा खा कर,सुनील की बीमारी और बढ़ती गई,उसके लिवर में भी कुछ समस्या आ गई।

कहने को अंकिता अब आज़ाद थी,कोई बंधन नहीं,सास ससुर,रिश्ते के ननद देवर कभी आते,उसी दिन चले जाते ,पर सुनील की बीमारी उसे धीरे धीरे तोड़ने लगी थी,एक बेटी भी आ गई थी इस बीच उनकी,दो दो बच्चों का साथ,उन्हें अकेले संभालना,फिर सुनील का गिरता स्वास्थ्य उसे हर वक्त कमजोर बना रहा था।


अब उसे अपनी गलती समझ आ रही थी कि उसने अपने सास ससुर के साथ बहुत गलत किया,परिवार में सबके साथ रहने की महत्ता अब उसे समझ आ रही थी।उसे डर था कि वो अब अगर अपने सास ससुर को बुलाएगी तो कहीं वो मना न कर दें।


इस बार,सुनील के जन्मदिन पर उसने एक छोटी सी पार्टी रखी और अपनी सास को बड़े आग्रह से बुलाया।

उसे उम्मीद न थी पर वो दोनों आये और सारी देखभाल सम्भाली,जब वो जाने को हुए,अंकिता ने उनके पैर पकड़ लिए-मां,मुझे माफ कर दें...वो नज़रें झुकाए बोली


शकुंतला देवी अचकचा गईं-"क्या हुआ बहु,ऐसा क्यों कहा रही हो?"


अंकिता-"आप अपना घर,बच्चे सम्भाल लें मां,मैं थक गई आपके बिना सब कुछ सम्भालते..."


उन्होंने उसे गले लगा लिया,"तू भी हमारी बच्ची है,शुरू में पति पत्नि अगर कुछ समय अकेले रहना चाहते हैं तो इसमें बुराई क्या है,उन्हें एक दूसरे को समझने का वक्त मिल जाता है।हम कहाँ गए थे,हम यहीं हैं बेटा..."


अंकिता को आज उनका बड़प्पन समझ आ रहा था,उसे परिवार के साथ की वैल्यू नचचे से समझ आ रही थी।


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