अनकहे रिश्ते
अनकहे रिश्ते
ये कॉलेज के दिनों की बात है। मेरी शादी होने के कुछ दिनों बाद मैं डिप्लोमा का कोर्स कर रहा था। कॉलेज में ही मेरी दोस्ती एक लड़की से हुई जो मेरे बगल वाले बेंच पे बैठती थी। दो दिन तीन दिन पर एक बार बात हो जाया करता था। अब अपने पारिवारिक वातावरण पे आ रहा हूँ। मेरे घर में मम्मी-पापा ,भाभी-भैया, छोटा भाई , दो भतीजी और समय बीतने के साथ मेरी सहभागिता से मेरी प्यारी पत्नी ने मुझे एक बेटा भी दिया। मेरी पत्नी बहुत प्यारी है, यूँ कहे कि सर्वगुण सम्पन्न। मुझसे कुछ ज्यादा ही प्रेम करती है।
उस लड़की से ना ही मैं प्रेम करता था और ना ही वह लड़की मुझसे प्रेम करती थी। पर ना जाने जबसे उससे मिला मेरा मन कभी उससे बात करने को करता तो कभी मिलने को। खैर बात होनी तो शुरू हो गई। मिलने को ना मैंने तरजीह दिया न ही उसने। पर धीरे धीरे उसकी आदत हो गई थी कि वो मुझे आधी रात को भी फ़ोन कर दिया करती थी। ऐसे ही एक दोस्त के नाते। लेकिन कुछ भी हो ना जाने हम दोनों में एक अनकहा रिश्ता जुड़ गया जो सामाजिक नज़रिये से गलत है कि एक शादीशुदा इंसान किसी भी कुँवारी लड़की से बात नहीं कर सकता। खैर बात होती रही थी और कभी कभी मज़ाक में हम कुछ प्राइवेट बातें भी कर लिया करते थे।
रिश्तों का नाम होना जरूरी होता है। नहीं तो वही रिश्ते आपके परिवार को तोड़ देते है। और ऐसा ही लगभग मेरे साथ हुआ। जब उसका आया हुआ फ़ोन मेरी पत्नी ने उठा लिया, असली तमाशा तब शुरू हुआ काफी मश्क्कत के बाद मैं अपनी पत्नी को समझा पाया। पर पता नहीं जब मैंने उसे दूसरे या तीसरे दिन ही बतला दिया था कि मेरी शादी हो चुकी है फिर भी वो इस बात को मान नहीं रही थी। ये अनकहे रिश्ते काफी गहरे होते है।।