अजीब दास्तां है ये

अजीब दास्तां है ये

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वो मेरे निपट अकेलेपन के शुरुआती दिन थे। मेरी पत्नी दुनिया छोड़ कर जा चुकी थी। मेरी बेटी का विवाह हो गया था और वो बहुत दूर रह रही थी। मेरे बेटे की शादी हो गई थी और वो विदेश में था। मैं घर में बिल्कुल अकेला रह रहा था। शहर में परिजन थे, किन्तु वो मुझे लेखक जान कर बेवजह डिस्टर्ब नहीं करते थे, तब मिलते थे जब मैं उनसे मिलने का प्लान बनाऊं। मैं सरकारी नौकरी से तो रिटायर हो चुका था पर अपने शौक के चलते कुछ संस्थाओं से इस तरह जुड़ा था कि उनमें मेरा नियमित समय भी खर्च होता और थोड़ी आमदनी भी होती। शहर के संभ्रांत इलाक़े में अपने सुविधाजनक फ्लैट में मेरा समय आराम से निकल रहा था। इन्हीं दिनों मैं सोशल मीडिया से जुड़ गया। फेसबुक, वाट्सएप, इंस्टाग्राम आदि को पर्याप्त समय देने लगा। कुछ दिनों बाद मेरे बहुत से आभासी मित्र बन गए। मित्रों में हर वर्ग, हर क्षेत्र, हर आयु, हर शौक़ के लोग थे! इसी दौरान एक सत्रह वर्षीय छात्र न केवल मेरा मित्र बना, बल्कि हर रोज़ मुझसे चैट करने लगा। मैं ये तो नहीं जानता था कि वो किस शहर का है और उसकी प्रोफ़ाइल वास्तविक थी या बनावटी, पर वो बहुत आकर्षक था और बेहद संजीदा बातें करता था। वह जिस तरह हिंदी और अंग्रेज़ी लिखता था, निश्चय ही वो किसी संभ्रांत, शिक्षित परिवार से था। वह हर विषय पर मुझसे बात करता, अपनी पढ़ाई, शौक़, शहर, सपने से लेकर देश की अर्थव्यवस्था से लेकर राजनीति तक। कभी कभी फ़ोन पर भी हमारी बात होती। अब मैं कभी कभी गंभीरता से उसके बारे में सोचने लगा।


मैं सोचता, मेरे और उसके बीच किस प्रवाह और निकटता में बात हो रही है? मैंने कई बार उसे बताया कि मेरी और उसकी उम्र में ज़मीन आसमान का अंतर है पर उसने इस बात पर कभी कोई टिप्पणी नहीं की। मैं सोचता- वो छात्र है, मैं यूनिवर्सिटी से जुड़ा शिक्षक। क्या वो मुझे अपने भविष्य के किसी मार्गदर्शक के रूप में देखता है। या मैं बड़े शहर में बिल्कुल अकेला रह रहा हूं, तो क्या वो भविष्य में पढ़ने के लिए पेइंग गेस्ट के रूप में मेरे पास आना चाहता है। क्या वो लेखन, पत्रकारिता में रुचि रखता है और मेरा प्रोफाइल देख कर मुझसे परिचय बढ़ा रहा है। उससे परिचय का लगभग एक वर्ष बीत जाने के बाद ये स्पष्ट हो गया था कि उसका प्रोफ़ाइल, फोटो, परिचय सब बिल्कुल सही है। और अब हम इस तरह बात करते थे जैसे वर्षों पुराने परिचित हों। वो मुझे हर खास अवसर या त्यौहार पर विश करने, शुभकामनाएं या बधाई देने में कभी भूल नहीं करता था। जवाब में ये ख्याल मुझे भी रहने लगा था। उसका घर बहुत दूर के एक शहर में था।

कुछ ही दिनों में उसने बताया कि बारहवीं कक्षा पास करके उसका प्रवेश इंजीनियरिंग कॉलेज में हो गया है और वह पढ़ने के लिए मेरे शहर में ही आ रहा है। उसने ये भी बताया कि मुझसे परिचय होने के बाद ही उसने अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा का फॉर्म भरते समय प्रवेश के लिए अपनी पसंद के रूप में इस शहर का नाम भरा था जबकि ये उसके घर से बहुत दूर है,और यहां उसका कोई परिजन भी नहीं रहता। मुझे अच्छा तो लगा पर मन ही मन मैं ये भी सोचने लगा कि शायद अब वो मुझसे मेरे साथ रहने का प्रस्ताव करेगा। ये भी मैं जानता था कि वो समृद्ध परिवार से है इसलिए यदि रहेगा भी तो अपना खर्च खुद ही उठा कर पेइंग गेस्ट के रूप में ही रहेगा। मुझे इस बात में कोई परेशानी नहीं थी कि वो मेरे पास आकर रहे। केवल दुविधा इतनी थी कि इससे पहले कई स्थानीय परिचित-अपरिचित लड़कों ने मुझे अकेला जान कर मेरे साथ रहने की पेशकश की थी। कुछ प्रस्ताव और सिफारिशें मित्रों और रिश्तेदारों की ओर से भी आए थे, पर मैंने उन्हें स्वीकार नहीं किया था क्योंकि मुझे इससे अपने लेखन कर्म में व्यवधान उत्पन्न होने का अंदेशा होता था। अतः अब यदि मैं किसी अपरिचित बाहरी लड़के को साथ रहने की स्वीकृति दूँगा तो उन ढेर सारे लोगों को अच्छा नहीं लगेगा, जिन्होंने पहले ऐसे प्रस्ताव किए थे। मैं मन ही मन कोई ऐसा बहाना सोचने लगा जिससे मैं अपने इस आभासी मित्र को भी मना कर सकूँ। यद्यपि इस किशोर मित्र की आशा को किसी भी तरह ठेस पहुंचाना मैं नहीं चाहता था। लेकिन ऐसी नौबत ही नहीं आई। वो एक विश्वविद्यालय के हॉस्टल में प्रवेश लेकर ही इस शहर में आया। उसने मुझसे कभी नहीं कहा कि वो मेरे साथ रहेगा। अब पढ़ाई की व्यस्तता के चलते मेरी और उसकी चैटिंग आठ दस दिन में एक बार ही हो पाती। लेकिन वह लगातार मुझसे संपर्क में रहा। अपने, अपने कॉलेज के, अपनी पढ़ाई के, अपने घर- परिवार के सभी समाचार मुझसे शेयर करता रहा। वह मेरे कहने पर एक दिन मुझसे मिलने भी चला आया। बहुत ही समझदार, स्मार्ट, संजीदा लड़का। मिलकर मुझे बहुत अच्छा लगा। मैं मन ही मन अपने को समझाता रहा कि ये यदि मेरे पास रहने का प्रस्ताव करता तो मैं कैसे मना कर पाता। सच कहूं, तो एक बार मुझे ये भी लगा कि ऐसा ही हो, वो यहां मेरे साथ रहे। पर वो मुझसे मिल कर थोड़ी देर में वापस चला गया। वह मुझसे टीचर्स डे पर मिलने आया था और साथ में एक खूबसूरत ग्रीटिंग कार्ड और गिफ्ट भी लेकर आया। मैं अभिभूत हो गया।

वो चार साल इस शहर में रहा और इस बीच केवल तीन चार बार हम मिले। एक दो बार हमने साथ खाना खाया। उसकी परीक्षाएं जब भी होती थीं तो मैं भी उसे शुभकामनाएं देता था। फिर एक दिन उसका संदेश आया कि उसकी पढ़ाई पूरी हो गई और अब वो हमेशा के लिए वापस जा रहा है। अब मैंने अनुभव किया कि उसके संदेश कुछ कुछ भावुकता भरे होने लगे हैं। मैंने सोचा, शायद अब पढ़ाई की व्यस्तता समाप्त हो जाने के कारण वह कुछ फ़्री हुआ है तो दिल खोल कर बात कर पा रहा है, और उस पर जीवन के चार साल यहां बीतने का भावनात्मक असर भी है। उसकी उम्र अब लगभग बाईस साल हो चली थी और उसकी बातों को किसी भी तरह बचपने में कही गई बातें नहीं माना जा सकता था। उसने कुछ संकोच के साथ लिखा कि वो शहर छोड़ जाने से पहले एक दिन मेरे साथ रहना चाहता है। मेरे लिए इसमें भला ऐतराज की क्या बात हो सकती थी। मैंने सहर्ष उसे आने के लिए लिखा। उसका सामान हॉस्टल से वापस जा चुका था, और अब कमरा ख़ाली करके वो शाम को मेरे पास आ रहा था। अगले दिन दोपहर में ही उसकी ट्रेन थी जिसका रिजर्वेशन वो करवा चुका था। शाम पांच बजे वो आ गया। उसने आते ही मेरे पाँव छुए। फ़िर अपना बैग रखा और हम बातों में खो गए। रात आठ बजे हम बाहर बाज़ार में निकले और थोड़ा घूम फ़िर कर खाना खाया। घर लौट कर हम फ़िर से बातों में डूब गए। सुधि आई रात लगभग दो बजे। न जाने कितने बजे रात को हम सोए। अगले दिन वो चला गया।


कुछ महीने वो उसके अपने शहर में अपने माता पिता के पास रहा। फ़िर एक दिन खबर आई कि उसे विदेश में नौकरी मिली है और जल्दी ही वो देश छोड़ कर चला जाएगा। विदेश जाने से पहले उसने एक लंबा संदेश मुझे भेजा और उस पर नोट डाला- ध्यान से पढ़िएगा, मैं ये पूरे होश हवास में, मन की गहराइयों और दिमाग़ के उजाले के साथ लिख रहा हूं... जल्दी जवाब दीजिएगा...

आगे लिखा था कि मैं देश छोड़ कर नहीं जाना चाहता, लेकिन मैं अपने घर माता पिता के साथ भी नहीं रहना चाहता। यदि आप मुझे हमेशा के लिए अपने साथ रखने के लिए तैयार हों तो मैं आपके पास आना चाहता हूं। आप बिल्कुल चिंता न करें, मैं नौकरी करूँगा और हम हमेशा हँसी खुशी से साथ में रहेंगे। मैं बहुत सोच कर ही सब कह रहा हूं और मेरे निर्णय में ज़िन्दगी भर कोई बदलाव नहीं आयेगा। मैं 16 साल की आयु से आपको जानता हूं, और अब तो मिल भी चुका हूं। मैं जानता हूं कि ये रिश्ता बहुत अजीब है और न आप और न मैं, किसी को समझा पाएंगे कि हम क्यों मिले, कैसे मिले? पर मैं अपने आप को भी ये समझा नहीं पा रहा हूं कि आपके बिना मुझे कहीं भी रहना अच्छा नहीं लगेगा। मैंने पिछले पांच सालों में खुद को समझाने की कोशिश की मगर मेरे विचार, मेरी इच्छा, मेरा मन आज भी वही कहता है जो शुरू में मैं सोचता था। आपसे ज़्यादा न मिलते हुए भी मैं मन से आपके साथ ही रहता था और इसीलिए आपके पास आने में झिझकता था कि आप मुझसे दूर होने की कोशिश न करने लगें।

मैंने उसके संदेश को कई बार पढ़ा पर उसे कोई भी जवाब नहीं दिया।

वो चला गया। उसने विदेश पहुंच कर अपना संपर्क, पता मुझे भेजा और अपनी नौकरी ज्वाइन कर ली। दो साल बीत गए। अब हम फेसबुक पर भी संपर्क में नहीं हैं और न ही उसने मुझे, और न मैंने उसे कभी फ़ोन किया। लेकिन आज उसका फ़िर एक छोटा सा संदेश मुझे मिला है कि वो मेरे उत्तर की प्रतीक्षा किया करता है। उसने लिखा है कि वो कभी अपने देश वापस नहीं लौटेगा। उसका कहना है कि मेरे पास दो रास्ते हैं- या तो मैं उसके साथ हमेशा रहने के लिए उसके देश पहुंच जाऊँ,या फ़िर उसे अपने साथ हमेशा के लिए रखने की सहमति दे दूँ तो वो मेरे पास लौट आएगा। उसने लिखा है कि वह या तो यहां कोई नौकरी कर लेगा, या फ़िर कोई बिज़नेस।

मुझे कभी कभी लगता है कि वो इन दो सालों में मुझे फेसबुक पर ही देखता रहा है। मैं भी कभी कभी स्मृतियों में ही शायद उसे देखता रहा हूं। पर मेरे पास उसे देने के लिए कोई जवाब नहीं है और उसके पास अब तक मुझसे संपर्क तोड़ लेने का कोई विकल्प नहीं है। अब वो टीन ऐजर नहीं है कि भावुकता में कुछ सोचता और कहता हो...मेरी उम्र ऐसी नहीं है कि मैं उसे कुछ भी जवाब दूँ! और हां, हम दोनों एक दूसरे के धर्म की सभी ज़रूरी और त्यौहार बातें याद रखते हैं क्योंकि हमारे धर्म अलग अलग है!


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