अच्छे लड़के आजकल मिलते कहाँ है?

अच्छे लड़के आजकल मिलते कहाँ है?

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"अरे पूजा कहाँ हो तुम, आज कॉलेज नहीं जाना शाम को तुम्हें देखने के लिए लड़के वाले आ रहे हैं , वो शालिनी आंटी हैं ना उनकी ननद का बेटा, बता रही थी बहुत ही संस्कारी लोग हैं , खुले विचारों के हैं , मैं तो बस भगवान से दुआ माँग रही हूं कि अपनी पूजा का रिश्ता वहाँ हो जाये वरना अच्छे घर मिलते कहाँ हैं आजकल।"


अनिता जी अपनी देवरानी को बताते हुए सारा वृतांत पूजा को बता रही थी,

"देखो पूजा उनके सामने ज्यादा बात मत करना , बस सर हिला कर जवाब देना, नजरें नीची रखना, और पूछे कि आगे तुम जॉब करना चाहती हो तो साफ मना कर देना, कहना मेरा तो घर गृहस्थी में ही मन लगता है।"


किसे झूठ बोल रही थी माँ, खुद अपनी बेटी को जिसे उन्होंने जन्म दिया ,जिसकी हर एक साँस को उनके सिवा कोई नहीं पहचानता ,आज वो मुझे ये झूठ बोलने को कितनी हिम्मत के साथ कह रही थी, वो भी इसलिए कि अच्छे लड़के नही मिलते। क्या कमी है मुझमें ?आज के जमाने की हूँ, पढ़ी लिखी हूँ, आज के समय की रफ्तार पकड़ सकती हूँ, फिर भी आज मुझे दूसरों के दिखावे को अपना मुखोटा बनाना पड़ेगा।


कब वो दिन आएगा जब किसी लड़के की माँ उसे बोलेगी की जा तैयार हो जा तुझे देखने लड़की वाले आ रहे हैं , कब वो दिन आ एगा जब एक माँ अपने बेटे को ये नसीहत देगी कि ऐसा मत करना वैसा मत करना, शायद कभी नही,क्योंकि जिस लड़की को जन्म देकर माँ खुद ये संस्कार सिखाती है तो दूसरों से क्या उम्मीद होगी।


और उसी सोच के साथ मन मार के पूजा तैयार हो गयी, शाम होने वाली थी , शालिनी ऑन्टी भी साथ आने वाली थी लड़के वालों के।

घर पकवानों से महक रहा था, वैसे रोज ऐसे पकवान नहीं बनते,पर आज उनके लिए बन रहे थे जिन्हें हम जानते भी नहीं थे, शायद ये एक रिश्वत ही थी मेरे परिवार की तरफ से, सब चाहते थे कि मैं उन्हें बस कैसे भी पसंद आ जाऊं


मन कर रहा था भाग जाऊँ, ऐसे रिश्ते में मुझे बांध रहे थे जिसकी शुरुआत ही मुझसे झूठ बुलवा के की जा रही थी।


इसी बीच गुंनी मेरी भतीजी की आवाज आई "वो लोग आ गए माँ!"

सबके चेहरे पर जैसे हँसी की लहर दौड़ गयी,बस एक मैं थी जिसे घबराहट हो रही थी ,क्योंकि मैं ही तो वो बकरा थी जो बिना ईद के शहीद होने वाली थी।

बहुत ही गर्म जोशी से उनका स्वागत किया गया, मैं कमरे में थी पर आवाज साफ सुनाई दे रही थी।


थोड़ी देर में मुझे ले जाने के लिए मेरी भाभी और माँ आ गयी, जैसे मैं लाचार थी और कोई मुझे सहारा दे रहा था, जिंदगी भर अपाहिज बना देने के लिए,कितनी ख्वाहिश थी मेरी ये करुँगी वो करुँगी,पर सब बेकार हो चुकी थी।

शायद लड़कियों की किस्मत यही होती है।


माँ ने नसीहत दी थी "नजरें झुका के रखना"।


मैं वहाँ जाकर लड़के की माँ के पास बिठा दी गयी, अब आगे की पूछताछ तो वही करने वाली थी, आज और अभी से जिन्होंने मुझे जन्म दिया उनका हक खत्म हो गया था।


देखिए ,शालिनी जी तो, पूजा को जानती ही है, बहुत संस्कारी है मेरी बेटी ,घर के कामो में खूब हाथ बटाती है मेरा, कभी पलट कर जवाब नहीं देती, बाहर काम करने की भी उसकी कोई इच्छा नहीं है, वो तो बस घर गृहस्थी में खुश रहती है।


मेरा मन टीस मार रहा था मुझे, आज मेरी माँ भी मुझे मेरी दुश्मन लग रही थी, मन कर रहा था चिल्ला कर बोल दूं की सब झूठ है , मैं ऐसी बिल्कुल नही हूँ और ना बनना चाहती हूँ, एक आँसू जो मेरी हथेली पर गिरा वो मैंने ही देखा।


चित्रा जी लड़के की माँ ने पूछा "देखिए बहनजी ये तो अच्छी बात है ।

पूजा मेरी तरफ देखो बेटा, मैं नही चाहती कि तुम मेरे घर आओ तो मेरे घर का काम करने आओ, मैं कोई मेड नहीं चाहती ,मेरे बेटे के लिए मैं एक बेटी चाहती हूँ जो रिश्ते में बहू हो पर मेरी बेटी जैसी हो।

मन थोड़ा खुलने लगा था, ये शब्द मरहम का काम कर रहे थे मेरे, पर क्या भरोसा ये तो सास होगी और हमारे देश में सास हमेशा नकारात्मक स्वभाव की परिचायक होती है,फिर भी मन कर रहा था कि उनकी बात पर विश्वास कर लूँ।


"देखो बेटा ,तुम मुझे खुल कर बताओ क्या उम्मीदें हैं तुम्हारी इस शादी से, मुझे अच्छा लगेगा, मैं चाहती हूँ कि तुम अपना कैरियर आगे बढ़ाओ ,अपना नाम कमाओ, अपनी पहचान बनाओ, हम सब तुम्हारे साथ होंगे, कभी भी घबराना मत। जिस तरह रोहित स्वतंत्र है अपनी जिंदगी के फैसले लेने में तुम भी होगी।"


तुम्हें दिखावा करने की कोई जरूरत नहीं है तुम हमें पसंद हो, पर हम जिस समाज में रहते वहाँ लड़के वाले अपने आप को हावी कर देते हैं जैसे वो अपने बेटे और घर के लिए नौकरानी ढूंढने आये हैं , बहू शब्द को इन लोगो ने इतना तुच्छ बना दिया है कि सबकी नकारात्मक सोच हावी हो चुकी है, ऐसे में एक माँ अपनी बेटी को यही हिदायतें देती है, उसे खुद अपना मन मारना सिखाती है, उसके सपनो की बलि खुद चढ़ाना सिखाती है। जब तुम्हारा आँसू हथेली पर गिरा तो समझ गयी थी कि तुम अपने ही घर में अपने ही विचारों को लेकर कितनी विवश थी।औऱ उसके लिए जिम्मेदार थी हमारे समाज की सोच।


पर हम उनलोगों में से नही हैं हमारी सोच वैसी नहीं है, हम बहू के रूप में हमारे बेटे के लिए पार्टनर चाहते है जो उसके कदम कदम मिला के चले।


मेरे आँखों से आँसू की धार रुक नहीं रही थी, जो उम्मीद मै अपनी माँ से कर रही थी वो किसी और कि माँ को मेरे उस हथेली पर गिरे आँसू में नजर आ गयी थी।

और ये रिश्ता तय हो गया था , सच कहा था माँ ने हर किसी की किस्मत ऐसी नहीं होती कि उन्हें ऐसे रिश्ते मिले।

तो पूजा औऱ रोहित की शादी तय हो गयी थी,दोनों के स्वतंत्र विचारों की नींव पर।


मेरी शादी में जरूर आना।




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