अब डर लगता है
अब डर लगता है
"मां मेरे केंचुए कहां चले गए"? चार वर्ष की प्रीति ने परेशान होकर अपनी मां से पूछा। "केंचुए"? रवीना( मां) ने आश्चर्य से सवाल पर सवाल किया। "हाँ माँ, हम सभी विद्यालय में दोपहर का खाना खाने के बाद, हाथ से मिट्टी खोदकर, केंचुए पकड़कर अपने-अपने टिफिन में रखकर घर ले आते हैं। मैंने छज्जे में टिफिन खोल कर रखा था और पास में पानी भी रखा था ताकि, अगर उनको प्यास लगे तो वे पी सकें, लेकिन अब वहां एक भी केंचुआ नहीं है। पता नहीं सब कहां चले गए"। - प्रीति ने बताया रवीना अपनी मांटेसरी जाने वाली बेटी की बातें सुन मंद-मंद मुस्काने लगी और कहा शायद वह अपने मम्मी-पापा से बिछड़ने के कारण दुखी होंगे, अतः वापस मिट्टी में चले गए होंगे, फिर सोचने लगी- " सही है बच्चे जो कर सकते हैं, हम नहीं कर सकते, मुझे तो केंचुए छूने में भी डर लगता है, फिर पकड़ कर घर लाना तो बहुत दूर की बात है"। तभी प्रीती बोल उठी- " हां माँ, आप सच कह रही हैं। मुझसे ही गलती हो गई , मुझे उन्हें अपने घर नहीं लाना चाहिए था , उनका भी तो अपना एक घर होगा, उनके माता-पिता भी उनके समय पर न पहुँचने पर उनकी चिंता कर रहे होंगे जैसे आप लोग मेरी करते हैं ।"