"यहाँ औरतें बिकती हैं" कौन बेच सकता है औरत को....
बहुत थकान महसूस हुई।ओह ! ये क्या। उफ़न गई सारी खीर।
मन ही मन उसने उन बच्चों को धन्यवाद दिया, जिनके कारण वो अपने परिवार के पास वापस आ सका।
दुविधा की बदली छट चुकी थी। निश्चिंतता की चादर में दोनों के दिल एक हो चुके थे।
आफिस के बाहर गाड़ी से उतरते ही एक अनियंत्रित ट्रक नें रौंद दिया विशाखा को…
लकड़बग्घे का पेट जैसे अंधा कुआँ होता है. लेकिन पारिस्थितिकी में उसका बड़ा योगदान माना जाता है!