लेखक : निकोलाय गोगल अनुवाद : आ. चारुमति रामदास।
पर बेटा मुझे इस संसार मे लाने व पालकर इस काबिल बनाने की कृपा तो उन्हीं की है ना।
आज के दौर में अपने माता पिता व मायके का इतना उल्हना भला कौन बहु बर्दाश्त करती है।
इस अनजाने चेहरे को पाने का प्यार और आनन फानन में सभी सदस्य कदम कदम पर माँ को सावधानी से कार्य करने की सलाह देते रहते
"जब तुम अपना घर बार मातापिता छोड़ हमारे पास आयी थी तो हमने तुम्हे हर बात से आगाह किया था |" हमने यह भी महसूस किया है। .....
प्रैक्टिकल हो जाइये भाईसाहब, इसी से संसार चल रहा है। संवेदनाओ के तार- तार होते दिखाई दे रहे है।