बिजली अब भी कड़कड़ा रही थी। गुड्डू..जो महज 4 साल का था रोटियाँ खा रहा था
टाट का थैला सर पर बिछाए बुढ़िया चल दी। बृजमोहन जी भी जल्दी जल्दी कदम बढ़ाने लगे। मंदिर के बाहर बृजमोहन जी को उनके बेटे न...
घर पर मातम सा पसरा था। खाना भी बना पर किसी से खाया न गया।
रोजेच दुपहरिया में बनात हे.... भात दाल सब्जी ही....और वहीच खाकर बड़े शान से कहती है
"देश विकास की राह पर अग्रसर है"
समझ नहीं पा रहा था कौनसा जीवन सही, भूख..दीपक.. या मृत्यु...