अनीष बोला- अच्छा पापा चलता हूँ।और वो चला गया। नीलेश अपनी बेटी के साथ खेलने लगा।
यह छुट्टिया हमेशा के लिए नहीं हो सकती? फिर तो कितना मजा आ जाता !
चलिये हम सब इन लोगो के ढेर सारी दुआयें यह तो हम लोग कर ही सकते हैं।
जिसकी बदौलत वह जिसे दूर से निहारता रहता था आज उसकी बाँहों मे पड़ी थी।
लेकिन मेरे पास राधिका को हिम्मत देने के अलावा कुछ नहीं था।
यह सुनते ही सुधीर बहरा, गूंगा और अंधा हो गया। उसने कागज़ खोल कर देखा और फफक पड़ा।