इस उम्र में इतनी समझ तो उसे आ ही चुकी थी इन्सान के नाम की जगह बॉडी शब्द का प्रयोग उसके मरने के बाद ही किया जाता है। हाथो...
बस प्यार कीजिए एक दिन तो वो आयगा ही और न भी आया तो क्या प्यार तो रहेगा ही।
शायद एकआध बार उसने हम से नजर मिलायी भी हो पर ऐसा जब भी हुआ होगा हम ने झट से नजर चुरा ही ली होगी
"हां सर, आप बिल्कुल सही कह रहे हैं।" प्रधानाचार्य जी की कही हुई बातें रमेश के पिता के समझ में आ चुकी थीं।
पहली नजर में इंसान को पहचानने में गलती हो जाती है। यही दर्शाती कहानी
क्या कुछ पुरुष बांझ नहीं हो जाते ? बिना बच्चों के कितने परिवार हैं।