आदमी नहीं एक भीड़ है जिसका न कोई जात है न कोई मज़हब ! आदमी नहीं एक भीड़ है जिसका न कोई जात है न कोई मज़हब !
मैं तड़पती रहूंगी मगर वो मेरी, रूह तार तार कर जाएगा लाखो इंसान भेड़िए हो जाएंगे, तब वो कलयुग कहलाएग... मैं तड़पती रहूंगी मगर वो मेरी, रूह तार तार कर जाएगा लाखो इंसान भेड़िए हो जाएंगे...