आज फिर साबित हुआ कि वकील हमेशा न्याय का रक्षक ही नहीं होता। आज फिर साबित हुआ कि वकील हमेशा न्याय का रक्षक ही नहीं होता।
सब कुछ स्वीकार अर्थात समझा जा सकता है है ना सखी। सब कुछ स्वीकार अर्थात समझा जा सकता है है ना सखी।