समेट ना सका मैं ख्वाहिशें मुट्ठी में, और ज़िन्दगी हरपल सिमटती गई। समेट ना सका मैं ख्वाहिशें मुट्ठी में, और ज़िन्दगी हरपल सिमटती गई।
सोच में पड़ जाते हैं अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनकर क्या सत्य कहती मेरी तनहाइयाँ। सोच में पड़ जाते हैं अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनकर क्या सत्य कहती मेरी तनहाइयाँ।