आग़ाज़-ए-ज़िंदगी की लाई मदहोश वस्ल की रात इकरार-ए-चाहत से हक़ीक़त बनेगा। आग़ाज़-ए-ज़िंदगी की लाई मदहोश वस्ल की रात इकरार-ए-चाहत से हक़ीक़त बनेगा।
जब अपने बचपन की मासूमियत से महरुम थे हम। जब अपने बचपन की मासूमियत से महरुम थे हम।