ज़िन्दगी एक लहर
ज़िन्दगी एक लहर

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ज़िन्दगी एक लहर
भँवर में घिरे हुए हम
जब भी किनारे लगने लगे
तभी निकले अपना दम
कभी डूबते कभी तैरते
कभी सिर्फ गोते लगाते
अपनी साँसों को भर के
ज़िन्दगी का लुत्फ उठाते
एक दिन सोचा निकले हम भी
इस भँवर के जंजाल से
लहर किनारे ले गई तब
बिठा एक कंकाल पे
किनारे जाकर हुई मुलाकात
एक अजनबी के साथ
थामा उसने मेरा हाथ
चल पड़े हम साथ - साथ
कुछ हंसी पलों के बाद
वो चला गया कर ये फरियाद
कि ज़िन्दगी है एक लहर
जिसमे रुकने वाला हुआ बर्बाद
मैं क्यूँ रुकी ? ये सोच मैं
दारिया में अश्क बहाने लगी
ज़िन्दगी एक लहर है
मैं फिर वहीं समाने लगी।