युवा प्रेरणा स्वामी विवेकानंद
युवा प्रेरणा स्वामी विवेकानंद
उन्नीसवीं सदी के सन् तिरीसठ को,
था मकर संक्रांति का ऐसा शुभ दिन आया,
विश्वनाथ के आंगन वह विश्वनाथ का था,
बेटा बन कर आया,
माता भुवनेश्वरी देवी ने था नरेंद्र नाम धरया,
पहली गुरु माता बनी,
बने गुरु परमहंस रामकृष्ण।
धन्य हुई वह मां,
जिसने उसको जन्म दिया,
बालक था जन्मा ऊंचे कुल में,
फिर भी अभिमान दूर रहा उससे।
संन्यासी योगी बन उसने,
भारत के जन जन के,
उत्थान का शपथ लिया,
घूम घूम कर देश विदेश,
मां भारती का परचम लहराया,
दीन हीन दुखियों के सेवा को,
उसने लक्ष्य बनाया।
वह बालक था अद्भुत,
जग भर विवेकानंद नाम कहाया,
पर देखो प्रभु की अद्भुत माया,
बीसवीं सदी के वर्ष दूसरे,
ऐसा अशुभ दिन आया,
मां भारती के इस सपूत को,
सारे जग ने शीश नवाया।।