यहाँ ख़ुद से तो यारो दग़ा कोई नहीं करता
यहाँ ख़ुद से तो यारो दग़ा कोई नहीं करता
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यहाँ ख़ुद से तो यारो दग़ा कोई नहीं करता।
मगर सच ये भी ,ग़ैरों से वफ़ा कोई नहीं करता।
ज़माने से तवक़्क़ो है, रहे वो रूबरू अपने।
मगर ख़ुद को कभी अब आइना कोई नहीं करता।
उजालों से सभी का यार देखो रिश्ता गहरा है।
अंधेरों को मगर अब रास्ता कोई नहीं करता।
ज़रूरत के मुताबिक अब बदल डाला उसूलों को।
ज़मीर-ओ-ज़ात का अपने कहा कोई नहीं करता।
फ़रेबों पर ही कायम है सभी की ज़िन्दगी यारो।
हक़ीक़त का मियाँ अब सामना कोई नहीं करता।
ज़रूरत के मुताबिक अब बदल डाला उसूलों को।
ज़मीर-ओ-ज़ात का अपने कहा कोई नहीं करता।
