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Dr. Pankaj Srivastava

Others

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Dr. Pankaj Srivastava

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ये दीवाली, दिये वाली

ये दीवाली, दिये वाली

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याद आती हैं वो जर्जर सी 'अम्मा'

जो बेचती थी दिवाली में प्रतिमा।

वो माटी के लक्ष्मी गणेश,

वो माटी के छोटे- बड़े दिये।

जीवन का अजब रंग है देखो,

जिनके दियों से रोशन हर घर होता

झोंपड़ों में उनके ही अन्धेरा हर पल होता।

हम आज एल ई डी की चकाचौंध में डूब गये,

मिट्टी के दिये से रोशन होँगे झोपड़े, भूल गये।


देखो तो हाट के कोनों को, 

वो 'अम्मा'आज भी जर्जर है,

मिट्टी में मिलने को अग्रसर है,

खुद के लिये तो जीते हैं सब,

कुछ औरों की भी आस बनो अब।


इस दिवाली कुछ ऐसा हैं करते,

उन झोपड़ों में रोशनी हैं भरते।



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