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Ruchika Rai

Others

4.8  

Ruchika Rai

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व्यथा मन की

व्यथा मन की

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व्यथा यही कि आप आँसू भी अकेले बहाते हो,

उन आँसुओं का वजह भी खुद को बताते हो,

कोई आस पास नजर नहीं आता है अपना,

खुद को तिल तिल कर मरता हुआ पाते हो।


ये कैसी तकदीर है जिसे ईश्वर ने लिखी है,

हालाँकि हर आँच को सहने की आपने सीखी है,

व्यथा यही कि आप खुल कर रो भी नहीं पाते हैं,

मुस्कान खोखली से चेहरे पर आपके दिखी है।


बड़ी शिद्दत से ये तलब मन में जगी हुई है,

पास कोई हो जो समझे ये आस लगी हुई है,

पर अफसोस इस तलब से अपने दर्द को बढ़ाते हो,

प्रारब्ध ने तुम्हारे हिस्से में ये न लिखी हुई है।


चलो छोड़ दो किसी से उम्मीद यूँ ही करना,

सब अपनी दुनिया में गुम हुए बैठे हैं।

क्यों किसी को याद दिलाओगे खुद को,

जब वह तुम्हारी तरफ से बेपरवाह हुए बैठे हैं।


खुद के जिस्म को खुद ही चलाना है,

अपने वजूद का बोझ खुद ही उठाना है,

ये रौनकें महफ़िल तुम्हारे काम की नहीं हैं,

बस चंद पल के लिए तेरे साथ जमाना


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