वतन से मोहब्ब्त
वतन से मोहब्ब्त
वतन से मोहब्ब्त भी अजीबोग़रीब सी होती है
पानी पीकर भी क़भी प्यास पूरी नहीं होती है,
जितनी खर्च करते है,उतनी ज़्यादा ये बढ़ती है
वतन से चाहत दरिया की लहरो जैसी होती है।
क्या सर्दी होती है और क्या गर्मी होती है
वतन के आगे सब मौसम की नरमी होती है।
वतन पर हम अपनी जान को निसार करते हैं
वो जवानी भी क्या जवानी है
वतन के जो काम न आये,
हम है फौजी
दिल के है मनमौजी,
हर लम्हा ही हम अपने वतन को याद करते हैं।
क्या जिंदगी औऱ क्या मौत
हम तो मरने के बाद भी
रूह बनकर भी मातृभूमि की रक्षा करते हैं।
ये दिल हमारा शीशे सा साफ़ है
टुकड़े टुकड़े कर दो भले जिस्म के हमारे,
हर टुकड़े में भारत की तस्वीर दिखाया करते हैं।
ै
