वोह बचपन भी कितना सुहाना था
वोह बचपन भी कितना सुहाना था
वोह बचपन भी कितना सुहाना था
जिसमे हर दिन एक फ़साना था
कभी माँ के आचल का सहारा था
तोह कभी पिता की दुलार का
वोह बचपन भी कितना सुहाना था
कभी नंगे पाव की दौड़ थी
तोह कभी स्कूल की लम्बी रेस थी
वोह बचपन भी कितना सुहाना था
कभी कोइ बात मनवाने पर रोने का बहाना था
तोह कभी डाट न पडे़ तोह लगने का बहाना था
वोह बचपन भी कितना सुहाना था
आज भी वोह पल याद आते है
तोह लगते है बड़े सुहाने
दिल करता है फिर उन्हे जी लेना का
वोह बचपन भी कितना सुहाना था
जिसे याद करके आंखों मे आसु आ जाए है
वोह बचपन भी कितना सुहाना था
जिसमे हर दिन एक फ़साना था
जिसमे ना कोइ बहाना था ना ही कोइ शिकायत
वोह बचपन भी कितना सुहाना था।
