वो गाँव का बचपन
वो गाँव का बचपन


वो याद है ना तुमको?
वो याद है ना तुमको
पीपल की छाँव
वो घर के बगल में
मेरे हौसलों को एक
नई उड़ान देते
सफेदे के ऊंचे ऊंचे पेड़
वो धरा पर बिखरे
सफेद, गुलाबी
चांदनी के फूल
या मुरझाई सी अलसायी सी,
खुद में खोई
मोर पंखी या
रातों को महकती
वो रातरानी,
वो डाल से टूटकर गिरते
पीले पत्ते।
और वो प्रफुल्लित
उल्लासित करती
नव दुल्हन सी कोपलें
वो जिस्मों से टकराकर
नई ऊर्जा का संचार
करने वाली अल्हड़ सी
मनमौजी सी बसंती हवा।
वो घर के बाहर
क्यारियों में खिलते
लाल गुलाब।
वो ऊंची ऊंची दीवारों से
पिलिंग मिलाती मनी प्लांट
व बासंती वल्लरियाँ।
वो खेतों में लहलहाती
पीली सरसों।
याद है ना तुमको।
वो याद है ना तुमको
रूठना मनाना
वो मेरे जमाने के
इकलौते धोती कुर्ता
वाले दादाजी के कन्धे पर बैठकर
उनके भूरे बालों को पकड़कर
सुबकते हुए, बाग तक जाना
और मुस्कराते हुए वापस आना
या यूँ ही रूठकर
रोते हुए दादी के आंचल में छुप जाना
और उनका प्यार से बालों को सहलाना
याद है ना तुमको।
वो याद है ना तुमको
बागों की अमराई
पपीहे का पीपना
कोयल का कूकना
वो गर्मी में ठंडी हवा
का एक झोंका
जो अनायास ही
तपते रेगिस्तान से मन को
मरुधान की शांति का
अहसास दे जाता था।
याद है ना तुमको
वो बागों में एक डाली से
दूसरी डाली तक जाना
कभी अमरूद, नाशपाती
जंगल जलेबी, आडू
के पके अधपके या कच्चे
फलों को ढूंढना
या कोयल के झूठे
फलों को बड़े प्यार से खाना।
और फिर आम की गुठलियों
को अंगुलियों के पोरों
में दबाकर गुठली से पूछना
ए गुठली बता तो
मेरे दोस्त का ब्याह
किस दिशा मे होगा?
और फिर दोस्त को
चिढाते हुए
पेड़ पर चढ़ जाना
और
एक नई प्रसन्नता का अनुभव करना।
हाँ, वो याद है ना तुमको।
वो याद है ना तुमको
एक टाँग वाला खेल,
खो खो वाला खेल
सोलह पर्ची वाला खेल
छुपन छुपाई वाला खेल
लटटू घुमाने वाला खेल
और हाँ वो पोसम्पा वाला खेल
और मन को लुभाता वो गीत
"पोसम्पा भाई पोसम्पा
लाल किले में क्या हुआ
सौ रूपये की घड़ी चुराई
अब तो जेल में जाना पड़ेगा
जेल की रोटी खानी पड़ेगी"
याद है ना तुमको।
वो याद है ना तुमको
खेतों को जुतने के बाद
मेहरिया पर बैठना,
दुनिया की हर खुशी को
महसूस करना
वो बापू का मांझे से
खेतो की मेड़ों को
बनाना और
वही पास में ही बैठकर
पैरों के सांचे से
ऊंची ऊंची चोटी वाले
घरोंदों का निर्माण करना
वो याद है ना तुमको
स्लेटों, तख्तियों पर लिखना
फिर बेकार सेल से
तख्ती को सिहा करना
और खड़िया से
अ से अनार या
आ से आम लिखना।
वो बारिश के मौसम में
कागज की कश्ती बनाना
और पानी में चलाना
या हवा में कागज के जेट
बनाकर उड़ाना
वो इस तरह छोटी छोटी
चीजों में बड़ी बड़ी खुशियां ढूंढ लेना
याद है ना तुमको।
वो अपने किसी के दूर चले जाने पर
सबका चुपके चुपके
आंखों से अश्रु बहाना
और फिर उन
खुद से कोसों दूर बैठे
अपने को चिठ्ठियाँ
लिखना और चिठ्ठियों के जवाब में
डाकिये का इंतजार करना।
और जब कई बार डाकिया
बिन घर के सामने रुके
निकल जाता था तो
दुनिया की सारी उदासी ओढ़ लेना
मन का विषाद से भर जाना,
याद है ना तुमको।
वो दादा दादी का रातों को
सभी पड़ोस के बच्चों के साथ
खाट पर बिठाकर
देर तक कहानियाँ सुनाना
वो बापू का खुद रस्से को बांधकर
झूला बनाना और बारिश
के झीने झीने मौसम में
वो बापू का श्रावण में
मल्हार गाना-
"झूला तो पड़ गई
अमुआ की डाल पर जी"
या वो अपने उन प्रिय रिश्तेदारों
का बेसब्री से इंतजार करना
जो सिंघाड़े की पूरी खेती को
उस लाल सी बोरी में सर पर
उठा लाते थे।
या 2 रुपये की मूंगफली
में जन्मों का प्यार समेट लाते थे।
वो चाचा बुआ का मेरे छोटे हाथों से
पके आम के बिना खुले
पिठ्ठू से एक एक आम निकलवाकर मंगवाना।
और खुद खा जाना।
याद है ना तुमको
वो याद है ना तुमको।
वो दिवाली पर
बापू के साथ
कटोरी रखकर
रॉकेट चलाना
या धागे में बांधकर
वो रेल को दौड़ाना।
वो याद है ना तुमको,
वो बाग में जाकर
पूजापों पर साथ साथ
खीर पूड़ी खाती सी यादें।
वो बहुत सी कही अनकही बातें
वो बहुत से लिखी अनलिखी बातें
वो आनन्द देती बातें
वो खट्टी सी बातें
वो मीठी सी यादें
वो अलसाती
झुलसाती
सपनों की रातें
याद है ना तुमको
या भूल गए॥
या दादा, दादी के साथ
दफन हो गयीं वो यादें
वो शहर की गरमी से
झुलस सी गईं है यादें
वो गाँव के शहर बनने की होड़ में
अपनेपन को भूल सी गई है यादें।
वो चरमरा सी गई है यादें
वो भरभरा सी गई है यादें
वो डबडबा सी गई है यादें
कभी कभी आखों की नमी से
धुंधला सी गईं है यादें
ऊंचाइयों को छू तो लिया हमने
पर सर पर एक दूसरे के साये
शहर की दोपहरी में गुम हो गए।
अब न वो गाँव रहे
न वो बाग, न वो रातरानी
न वो बेला, न वो मोरपंखी
न रिश्ते, न अपनापन
न वो आँचल , न फूल
न पेड़, न वो गुलाब
न वो छत से टपकता पानी
बस चन्द रूपयों के लिए
घरों को पक्का करते करते
दिलों को भी पक्का
कर बैठे है हम।
दफन हो गईं है वो यादें।
वो यादें, वो यादें
याद हैं न वो यादें
या बिछुड़ सी गईं है यादें
खो सी गईं है यादें
आंखों में सिमट सी
गईं है यादें
छलक सी गईं है यादें
नमी बनकर बादल सी
बरस पड़ी है वो यादें
बहुत याद आतीं है
आज कल वो यादें
वो यादें
वो यादें
गाँव की यादें
मिट्टी की सोंधी खुशबू सी यादें
जलती होली सी यादें
दिवाली के दीयों सी यादें
राखी सी यादें
हवन की लो में जलती सी यादें
कुम्हलातीं सी यादें
बिलखती सी यादें
उन यादों को ढूढ़ती
तलाशती सी यादें
वो यादें
वो यादें।