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Krishna Khatri

Others

5.0  

Krishna Khatri

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वो आँखें

वो आँखें

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वो आँखें

जो आज भी

मेरे साथ है

मुझे

प्यार करती है

दुलराती है

सहलाती है

कभी डाँटती है

तो कभी ..

मेरा सुरक्षा कवच भी

बन जाती है


कभी असीसती है

कभी बतियाती है

वो आँखें ..

जो हर पल उतरती है

मुझमें ..

समन्दर की गहराई लिये !

वो आँखें ..

जो समेटे बैठी है ..

पूरे ब्रह्मांड को


मैं रोती हूँ

तो ..

रोती है वो आँखें !

मैं हँसती हूँ 

तो ..

हँसती है वो आँखें !

वो आँखें …

जो ..

अजर है

अमर है

मेरे जनक-जननी

के होने का ..

अहसास कराती

है वो आँखें !

वो आँखें..

जो पल - पल 

धड़कती है मुझ में -

कभी जनक बनकर !

कभी जननी बनकर    



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