वक्त नहीं है_
वक्त नहीं है_
हूँ अपनी ज़िन्दगी में 'मसरूफ ' कुछ यूँ
कि 'मुस्कुराने ' का वक्त नहीं है,
था जो मेरा अपना कभी
आज उसी से मिल पाने का वक्त नहीं है।
तुम जब कह देते हो कि 'काम बहुत है आज यारा '
तुम्हारे पास आने का वक्त नहीं है
'व्हाट्सप्प ' , फेसबुक ' और 'ट्विटर'
सच्चे रिश्तों से अच्छे लगते हैं अब
क्यूंकि मेरे पास तुम तक चलकर आने का वक्त नहीं है।
'हाय', 'ओके ','हेलो ' ,'गुडबाय',
जैसे सीमित लफ़्ज़ों में सिमट गयी है दुनिया
क्यंकि हमारे पास हाथ मिलाने का वक्त नहीं है।
एक दूसरे पर हावी होने की 'होड़ ' लगी है
सही - गलत समझ पाने का वक्त नहीं है,
हो चुके हैं 'चापलूस ' अब काबिल
क्यूंकि 'ईमानदारी ' को समझने का वक्त नहीं है,
'जो दिखता है वो बिकता है '- की दौड़ में शामिल हैं सभी
क्यूंकि छू कर देख पाने का वक्त नहीं है।
घर यूँ तो लौट आता हूँ मैं वक्त के मुताबिक
लेकिन न जाने क्यों
मेरा इंतज़ार करती उन आँखों से सामना करने का मेरे पास वक्त नहीं है।
पूछ लेगी माँ कुछ और पिताजी सवाल कर देगें कुछ,
सादगी से इन सब बातों का जवाब देने का मेरे पास वक्त नहीं है
फिर मैं कहता हूँ सबसे कि 'मैं तन्हा हूँ ',
क्यूंकि वास्तविकता से नज़रें मिलाने का मेरे पास "वक्त नहीं है। "
