विश्वास
विश्वास
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सुनो मोहन
मैं हो गई तुम्हारी
बँसी की धुन
कर देती है मुग्ध
आस की डोर
बाँधी है विश्वास से
तन अर्पित
मन का समर्पण
चाहूँगी सदा
झंझट मोहमाया
स्वार्थ गठरी
बाँधकर चलना
मधुर रिश्ते
बीच भँवर रहे
पाँव में बेड़ी
किनारे की चाह में
भवसागर
कैसे हो अब पार
धन चाहत
छोड़ रे मन मेरे
संतुष्ट वही
जो सीख गया जीना
वर्तमान में
संभाल लेना रिश्ते
आस्था औ' विश्वास से !
