विदाई
विदाई
नैनों के काजल से
हाथों के कंगन से,
माथे की बिंदिया से
कानों के झुमको से।
सजधज के बैठ कर
भावों में डूब कर,
नेह सूत्र जोड़कर
साजन को याद कर।
सपनों में खोई सी
कुछ शर्मायी सी,
द्वंद्व से घिरी हुई
घूंघट को ढक रही,
और सब खड़े खड़े
रो रहे थे बड़े,
बिटिया विदाई का
दृश्य देखते रहे।
मेंहदी लगे हाथों से
मुस्काये अधरों से
घुंघरू की खन-खन से
पायल की छम-छम से।
चेहरे को छिपाकर
दर्द को दबाकर
पलकें झुका कर
सखियों को देखकर
कुछ बिलखाई सी
कुछ मुरझाई सी,
उदास वो हो रही
मन ही मन रो रही,
और सब खड़े खड़े
रो रहे थे बड़े ,
बिटिया विदाई का
दृश्य देखते रहे।