वापस लौट के मत आना( 40 )
वापस लौट के मत आना( 40 )
सुनो गौर से गांव वालों,
वापस लौट के मत आना,
सकुशल घर पहुंचने वालों,
तुम अपने गांवों में ही बस जाना,
रूखी-सूखी जो भी मिले वहीं खाना,
दाल-सब्जी नहीं मिले
चटनी के संग ही खाना,
पर तुम.........!
शहर वापस लौट के मत जाना,
मैं भी मजदूर हूँ मजबूरी जानता हूँ,
किस हालात में हम शहर आए हैं ?
माँ की गहने गिरवी रख
ब्याज से टिकट के पैसे लाए,
तब जाकर शहर में मजदूरी करने आए हैं,
छुड़ानी हैं वह माँ के गहने ,
चुकाना है वह ब्याज वाला पैसा,
बदन तोड़ मेहनत करता वह मजदूर हूँ मैं,
फुटपाथ पर धरती मेरा बिछौना हैं,
आसमान ओढ़ने का साधन है मेरा,
खुले आसमान को खुली आंखों से सपने निखारता हूँ,
माँ की दवाई-बहन की शादी-भाई की पढ़ाई,
इन सबके लिए अरमान सीने में लिए शहर आया हूँ,
कमर तोड़ मेहनत करते करते,
जोड़-तोड़ में कुछ भी जोड़ न पाया,
अचानक....!
कुदरत का कहर ऐसा बरपा,
किस्मत ने दिया मुझको धोखा,
ना तीज-त्यौहार और ना ही शादी ब्याह,
लिए दिल में टूटे अरमान चल दिए हम,
ना गाड़ी ना ही रेल गाड़ी बस पैदल चल दिये,
सड़क-सड़क और पटरी-पटरी चल दिये,
ना मुंह में निवाले और पांव में छाले,
जिस शहर को चमकाने गए उसने भी ना पाला,
ना शासन-प्रशासन और ना ही सत्ताधीशों ने भी संभाला,
शहर ने बेचारा मजदूर के पीछा छुड़ाया,
दुख के बादल छठ जाएंगे फिर से मुसकुराएंगे,
बेचारा कौन है वह समय समझा देगा उनको,
बस तुम वापस शहर लौट के मत जाना,
अपने ही गांव में बस जाना !!
