उतार -चढ़ाव की मित्रता
उतार -चढ़ाव की मित्रता
हम भी अपने मित्रों के
करीब रहकर
एक आशिया
बनाना चाहते हैं !
हम भी एक चाहत
के घरोंदों को
मिल के सजाना
चाहते हैं !!
सोचकर हम भी
निकले थे
एक अनजान
सफर में !
कोई हमराज
हमको मिल गया
मंज़िल की डगर पे !!
हमारे हाथों को थाम कर
कुछ देर तो
यूँ ही वो चलते रहे !
पर तूफान की
गर्दिशों में हम
दोनों बिछड़ते चले गए !!
अब बातें सब हमारी
उनको भी
बुरी लगने लगीं !
हम दूर होते गए
और हमारी
दूरियाँ बढ़ती गयी !!
एहसास फिर दोनों
को हुआ
मंज़िल नहीं आसान है !
सूर्य की ही रौशनी से
होता सदा विहान है !!
साथ चलकर साथ मिलकर
हम जहाँ को
जीत लेंगे !
हर ख़ुशी हर ग़म को
हम सभी बाँट लेंगे !!