उस अव्यक्त को
उस अव्यक्त को
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काल के अनंत-अविरल धारा में,
सृष्टि के सर्जन और विसर्जन में
चेतना गतिशील उसके दर्शन में
चैतन्य महाप्रभु का विराट रुप
काल क्रम आयाम स्वरूप
वंचित नहीं प्रकृति रूप
समर्पित उसको उसका प्रमाण,
उस अव्यक्त को अनंत प्रणाम।
प्रलय -प्रवाह भी सृजन आयाम,
गति ही हमारा भाग्य विधान,
अतीत, भविष्य या वर्तमान,
भागिरथि की तप -पूंज में
नियति की नव नृत्य-ताल में
हास्य -रुदन भाव-दृश्य में
नव नूतन उसका संचार,
उस अव्यक्त को अनंत प्रणाम।
हृदय - कमल के नवल रूप में
भाव- श्रृंगार के अभिसार - काल में
स्थूल - सूक्ष्म के नव -विहार में
क्या कहूँ और जो नहीं कहीं
आदि - अंत जिसका कहीं नहीं
सोच से भी जो परे रहे
पल - पल रहती उसकी याद,
उस अव्यक्त अनंत प्रणाम।
