STORYMIRROR

Gaurav Shrivastav

Classics Others

4.8  

Gaurav Shrivastav

Classics Others

उलझन

उलझन

1 min
316


रोज़ सुबह मैं किसी उलझन में रहता हूँ।

कभी प्यार में तो कभी दोस्ती,

तो कभी इन सांसारिक बंधन में मोहित

हो जाता हूँ ,

रोज़ सुबह मैं इस उलझन में रहता हूँ।


कभी आशाओं में तो कभी उम्मीदों,

तो कभी इस भ्रम की दुनिया में रह लेता हूँ,

रोज़ सुबह मैं इस उलझन में रहता हूँ।


कभी सही तो कभी गलत,

तो कभी दिल की राह को चुन लेता हूँ,

रोज़ सुबह मैं इस उलझन में रहता हूँ ।


कभी अमीरी की तो कभी गरीबी,

तो कभी आर्थिक फ़ैसलों में फँस जाता हूँ,

रोज़ सुबह मैं इस उलझन में रहता हूँ ।


कभी भलाई तो कभी बुराई,

तो कभी कुछ अच्छे के लिए गलत कर देता हूँ,

रोज़ सुबह मैं इस उलझन में रहता हूँ ।


कभी खुशी तो कभी ग़म,

तो कभी इस और की खुशी में जी लेता हूं

रोज़ सुबह मैं इस उलझन में रहता हूँ।

रोज़ सुबह मैं किसी उलझन में रहता हूँ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics