उदास बसंत
उदास बसंत
बसंत तुम....
क्यों उदास हो,
किस सोच में ....हो ?
कोहरे की लोई
उतारी ही नहीं,
जिंदगी की हकीकतों से ,
क्या............
तुम भी परेशान हो ?
बसंत तुम क्यों उदास हो ?
जिंदगी दौड़ रही है
एक उदासी -सी ,
हर चेहरे को घूर रही है ।
अपने अस्तित्व को ,
बचाने में हर जिंदगी ,
मर-मर के यहां घूम रही है ।
बसंत तुम क्यों उदास हो ,
किस सोच में हो ?
खुशियां बे -रंग हुईं हैं
अपनों को देखकर ,
अपनों के ,
एहसास से दंग हुई हैं।
किन के लिए ,
तुम फूल खिलाते
हंस -हंस के ,
सुगंधित हवा संग गाते।
रंगों से सजी ,
बसंत बहार को ,
घर -घर के आंगन में लाते।
बसंत तुम क्यों उदास हो,
किस सोच में हो ?
जिंदगी की हकीकत से ,
क्या तुम भी परेशान हो?