तुमने कहा था
तुमने कहा था
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तुमने कहा था,
साथ चलते फिर हाथ थामे
कसमें खाते,
फिर कुछ मोती तह से निकाले,
तुमने मेरे लिए हार बनाए,
कहां गए तुम, कहां गए पल,
तुम कहते थे आदत हो तुम,
मैने कहा आदत नहीं
ज़रूरत हो तुम,
फिर आदत कब बदल गई
सूरत सीरत ने रंग दिखा दिए
नय रंगों में खोकर पुरानी
यादों को भुला दिया
नई सुबह ने सबकुछ बता दिया
आग बुझाते अपने हाथ जला
लिए थे मैंने
रिश्तों के कड़वे घूँट छिपी
कहानियों के सिलसिले
लिख डाले थे मैंने।
किस्तों में रिश्ते बिकते नज़र आए।
ऐसे गुज़रा वक़्त जो खुद की
पहचान करवाए।
