ठहाके
ठहाके
1 min
242
तेरह जून को रविवार था आया ,
छुट्टी का माहौल घर में छाया ,
सुबह देर से उठ कमरे में ,
ठाहकों का दौर था छाया |
कोरोना काल में हँसना बहुत ज़रूरी ,
मिटती परिवार जनों की दूरी ,
सब तनाव मुक्त हो जाते ,
छककर भोजन कर इतराते |
दोपहर में नींद आँखों में समाती ,
कुछ देर आराम के लिए ललचाती ,
शाम को चाय के संग पकौड़े ,
जितने खा लो उतने थोड़े |
साप्ताहिक बाज़ार अब लगने लगे हैं ,
सब्जी - फल सब भरने लगे हैं ,
चाहे कितनी भी करो खरीदारी ,
मास्क लगाने में ही समझदारी ||