ठग
ठग
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जब मैं चला लोगों को ठगने
तो देखा लोगों को ठगते
सोचा था दर्ज होगा
इतिहास के पन्नों में मेरा नाम
पर देखा जब ऐसे बेईमान
यहां हर कोई एक नकली चेहरा लगाए हुए हैं
यहां मुझसे भी बड़े ठग छाए हुए हैं
कोई ठगता है रिश्तों को
कोई छलता प्यार
कोई छलता है इज्जत को
तो कहीं तार-तार होता है विश्वास
देखा जब ऐसे महारथियों को
तो छिन हुआ मन का वह भाग
मैं चला था लोगों को ठगने
पर यहां लगा है भावों का बाजार
अब पुनः वापस आकर बैठ गया
अब खुद को ठगा महसूस कर रहा हूं