तिरँगा
तिरँगा
तिरंगा कोई कपड़ा नहीं है ये हमारे ज़िगर का टुकड़ा है,
कोई बुरी नज़र से न देखे ये हमारे चाँद का मुखड़ा है,
इसके लिये हम जान देते भी हैं और जान ले भी लेते हैं,
ये हमारी शानोशौकत और अभिमान का मुखड़ा है।
तिरँगा कोई कपड़ा नहीं है ये हमारे जिगर का टुकड़ा है
कोई हमारे तिरंगे को छूना तो दूर,उंगली उठाकर तो देखे
काट देंगे उसके शीश को,ये हमारी इज्ज़त का कपड़ा है
ये फौजी की जान है,वो हर भारतीय की आन है वो
ये तिरँगा हर हिन्दुस्तानी के दिल में बहती पवित्र गंगा है
तिरँगा कोई कपड़ा नहीं है,ये हमारे जिगर का टुकड़ा है।
एक सैनिक की बस यही आख़री तमन्ना है,
तिरंगे में लिपटकर उसको गहरी नींद सोना है
एक सैनिक की सुहाग सेज का ये सोलह श्रृंगार तगड़ा है
तिरँगा कोई कपड़ा नहीं है,ये हमारे जिगर का टुकड़ा है।
वो रब भी हर बार बारिश बनकर रोता है
जब एक माँ से उसका बेटा जुदा होता है
ख़ुदा की इबादत सा पावन,
एक मां की ममता का सावन,
ये तिरँगा ख़ुदा सी ज्योति देनेवाला दीपक का टुकड़ा है
तिरँगा कोई कपड़ा नहीं है,ये हमारे जिगर का टुकड़ा है।