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सवाल

सवाल

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मुस्कुराहटों के साथ संग था।
आपके सवाल से मैं इतना दंग था।
 
चेतना के अर्थ में छुपा हुआ कहीं,
भावना के रूप में मिला हुआ यहीं।
चाहता था सब्ज-बाग देखता रहूं।
प्यार से दुलार से, पुकारता रहूं...
पीर की शिराओं से फड़कता अंग था।
आपके सवाल...
 
तुमने मुझको राह दी वो राह थी नयी,
चाहकर भी न मिले वो चाह थी नयी।
जोश का भरा हुआ उफान आ गया,
आत्मा में ओज का विहान छा गया।
मन में मेरे बज रहा बड़ा मृदंग था...
आपके सवाल...
 
पूछ लेते एक बार हँस के जब कभी,
मोड़ देता राह जो बनायी थी नयी।
साथ चल सकोगे या कि छोड़ दूं तुम्हें.
बन्धनों को तोड़ मुक्ति देता यूँ तुम्हें
स्वप्न जो सजाया आज रंग-भंग था..
"आज" के सवाल से मैं...


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