सूरते-जाँ और भी ख़राब
सूरते-जाँ और भी ख़राब
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हालाते जिस्म, सूरते-जाँ और भी ख़राब
चारों तरफ़ ख़राब यहाँ और भी बहुत
बुरे होंठों पे आ रही है जुबाँ और भी ख़राब
पाबंद हो रही है रवायत से रौशन
चिमनी में घुट रहा है धुआँ और भी ख़राब
मूरत सँवारने से बिगड़ती चली गई
पहले से हो गया है जहाँ और भी ख़राब
रौशन हुए चराग तो आँखें नहीं रहीं
अंधों को रौशनी का गुमाँ और भी ख़राब
आगे निकल गए हैं घिसटते हुए क़दम
राहों में रह गए हैं निशाँ और भी ख़राब
सोचा था उनके देश में मँहगी है जिंदगी
पर जिंदगी का भाव वहाँ और भी ख़राब!
