सुर्ख पड़ी बगियाँ है
सुर्ख पड़ी बगियाँ है
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सुर्ख़ पड़ी बगियाँ हैं,
जीवन देखों सखियाँ हैं,
नज़्म की रंगरलिया हैं,
अज़्म की गुस्ताखियाँ हैं,
तर्ज़ नहीं अर्ज़ है,
ये जीवन की गाथा है,
हुई जो गलियारों में है,
सुखी पड़ी गलियों में है,
दामन के नाम है
देखो सब ज़हनसीब है,
अधरों पर बैठी है,
जो वो कोमल उसकी बोली है,
मधुर स्वर गीत सुनाती है,
ये उसकी मीठी मधुशाला है।।