स्त्री मन की चाह
स्त्री मन की चाह
एक औरत क्या चाहती है क्या कोई कभी
जान पाता है ..???
शादी से पहले घर की इज़्ज़त की सारी जिम्मेदारी
बेटी पर होती है, मायके में यही सुनना पड़ता है
की ये तुम्हारा घर नहीं है ससुराल में अपने मन की
कर लेना और जब शादी होकर ससुराल जाती है
तो कहा जाता है अपने मायके में अपनी मन की
करना क्यों ऐसा कहा जाता है।
बेटियों को बस अपनी जिंदगी को एक
अंधकार भरे जीवन मे घिसती पीटती रहती है
पति और घरवालों की जरूरतें पूरी करते करते
उसका खूबसूरत यौवन कब वृद्धावस्था में पहुँच
जाता है पता ही नहीं चलता,
अब भी उसके जीवन की त्रासदी समाप्त नहीं होती
अभी तो और भी देखना बाकी रह जाता है
उसके बच्चों, जिसे वो नव माह अपने खून से
सींचती है
उनके द्वारा माँ को ये बताया जाता है कि
तुमने आखिर किया क्या है और
तुम नहीं समझोगी ये सब बातें
ऐसे जुमले बोले जाते है क्या ये चाहती
है एक औरत की उसके बच्चे उसे ताने मारे
जिन लोगो के लिए अपनी जिंदगी के खूबसूरत
लम्हे गँवा देती है उसे ये अहसास कराया जाता है
की वो करती ही क्या है..???
क्या उसे हक नहीं है सम्मान पाने का जिसने
अपना पूरा जीवन तुम्हारे लिए जिया क्या
वो हकदार नही तुम्हारी कामयाबी की
क्या चाहती है बस थोड़ी सी प्यार और थोड़ी
सी सम्मान बस हाउसवाइफ है तो क्या हुआ
वो पगार नहीं लेती, छुट्टी नहीं लेती
तुमसे बहस नहीं करती तुम्हारा हर काम
जिम्मेदारी से करती है फिर क्यों...???
