स्पर्श मां का
स्पर्श मां का
कर्तव्य में सुलगती दियासलाई,
की चमक से चौंधिया आंखों में
कुछ नमी सी नज़र आई,
कुछ कमी सी नज़र आई।
सुलगती आग बुझाते ख़ुद
के हाथ जला बैठी, वो कौन
है,वो मां है। वो बस मां है
ख़ुद को दोषी ठहराने वाले को मुंह
तोड़ जवाब वक़्त आने पर ही बताती है।
अपने जीवन को सूली पर ठांग देती है
पर अपने बच्चों पर आंच नहीं आने देती है।
वो मां ही होती है
ख़ुद आधी रात को उठ कर अपनी नींद की
परवाह ना करके बच्चो को झूले झुलाती रही।
ख़ुद खाने की मेज़ से उठ कर अपनी थाली की
को किनारे पर रख देती
पर बच्चों को गरम खाना
ही खिलाती।
किस जगह मिलती है वो मां का स्पर्श,
कहा जायूं , मां की गोद ही अच्छी लगती है
वो मां ही होती है,
बस वो मां ही होती है।
