'सपन जाग उठा यथार्थ सो रहा'
'सपन जाग उठा यथार्थ सो रहा'
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द्वंद हो रहा है और
युद्ध चल रहा है
सपन जाग उठा
यथार्थ सो रहा है,
हर इंसा छल कपट का
यहां पर बीज बो रहा है
सामने है राम का नाम
पीठ पर वार कर रहा है
द्वंद हो रहा है और
युद्ध चल रहा है।
सपन जाग उठा
यथार्थ सो रहा है।।
स्वार्थ लिए घूमते हैं सब
रिश्ते हुए हैं खोखले अब
हर रिश्ता स्वार्थ से है भरा
हर वक़्त तनाव हो रहा है
द्वंद हो रहा है और
युद्ध चल रहा है।
सपन जाग उठा
यथार्थ सो रहा है।।
ना भावों का संवाद रहा
ना है किसी को प्रेम यहां
पिता पुत्र,मां बेटी का अब
रिश्ता भी अब छल रहा है
द्वंद हो रहा है और
युद्ध चल रहा है।
सपन जाग उठा
यथार्थ सो रहा है।।
