सफ़र ज़िंदगी
सफ़र ज़िंदगी
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सफ़र ज़िंदगी
सीढ़ी दर सीढ़ी बढ़ती जाती है
बच्चों सा जीवन
बुढ़ापे सी परछाईं
ज़िंदगी की ये सीढ़ी
बस यूँ ही चढ़ती जाती है।
बच्चे थे हम कोमल अपनी माँ के
ना खौफ़ था ना डर था
पड़ाव बड़ा जज़्बात बदले
जिम्मेदारियाँ भी आ गयी।
दिन बदले साल बदले
परिवार भी तो बदल गए
जिनको गोद में झुलाया था
आज उनके हाथ का सहारा है।
जिनको प्यार से सोनिया दुलारा था
आज लाठी दे हमें
उन्होंने दुत्कारा है
ज़िंदगी का खेला है साहब,
ये लाठी आज मेरे हाथ
ये सीढ़ी और किनारा
आज मेरे जिस्म का
और कल ……..।।