“संघर्ष रचे नित इतिहास नए”
“संघर्ष रचे नित इतिहास नए”
जब मन तेरा हो जुगनू सा,
चँदा की लौ से डर कैसा I
तू चल निरंतर बिन रुके
तू पायेगा, चाहेगा मन में जैसा I
तू ध्यान लगा अंतर मन में,
क्षत - विक्षत जब मन तेरा हों I
मंज़िल फिर तुमसे दूर कहाँ,
ख़्वाबों में जब साहस का डेरा हो I
मन की जोत जलाओ तुम,
चाहे घनघोर अंधेरा छाया हो ,
दृढ मन कर कदम बढ़ा
पायेगा फिर नया सवेरा वो I
कठिनाई से फिर डर कैसा?
चाहे तूफानों से हों सफर भरे I
गिरो फिर उठो निरंतर प्रयास करो ,
खुद मज़िल जय जयकार करे I
जब अग्नि प्रचंड प्रहार करे,
तब मन शीतल तुम कर लेना I
अपनी बुद्धि बल से,
दुश्मन को तब तुम हर लेना I
सोचो उस पल की महिमा तुम,
जगत तेरा सत्कार करे I
हाथों की लकीरें न देखो तुम,
श्रम गाथा का संचार करें I
संघर्ष रचे नित यशगान नए,
जाने कितने ही बलिदान हुए I
तुम नहीं अकेले इस मेले में,
आशाओं की मशाल लिए I
सपनों के बादल बन तुम,
उस मंज़िल पर बह जाओ I
रच दो कुछ प्रयास नए,
फिर नया सा कुछ कह जाओ I
तुम हिम्मत क्यों हारे हों?
विपदा हों चाहे पर्वत सी बड़ी - बड़ी,
सम्भलो, थोड़ा फिर विचार करो I
कमर कसो, मुट्ठी को भींचो,
गाड़ दो परचम उस दुर्गम चोटी पर,
तुम खुद को यूँ तैयार करो I