स्नेह
स्नेह
भाई आपके स्नेह की छांव में ख़ुद को महफूज़ मानती हूं,
कुछ दिन आपने आगे बढ़ना सिखाया,
ठोकर लगी तो संभलना सिखाया।।
सब कोई तरस जाए आपका स्नेह पाने को,
इसलिए इस जहां में खुद को खुशनसीब मानती हूं।।
मैंने कभी उसे रोता हुआ नहीं देखा ,
उसने खुद को इस कदर मजबूत बनाया है।।
उसके चेहरे की मुस्कान ने उसके दर्द को छुपाया है,
प्यार तो बहोत है लेकिन कभी जताया नहीं है।।
कभी महीनों गुज़र जाते है बात नहीं होती,
और कभी कभी बिन बात के भी लड़ जाया करता है।।
पापा के गुस्से के सामने मेरे लिए ढाल बन खड़ा रहा वो,
भले ही बाद में घंटों पीटता रहा वो
अब धीरे धीरे बदला उसका मिज़ाज है,
क्योंकि उसके मन में आया शादी का विचार है।।।
