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रंजना उपाध्याय

Others

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रंजना उपाध्याय

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संडे का इंतज़ार

संडे का इंतज़ार

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संडे हो या मंडे,

रोज होते हैं काम के फंडे

संडे का दिन जब आता है।

पूरे हफ्ते का काम गिनाता

संडे हो।


मेहमान, दोस्तों के साथ

वक़्त का बिल्कुल न हिसाब

दिन भर भागा दौड़ी होती

बच्चों के साथ खूब मस्ती होती

संडे हो।


बूढ़े, बच्चे हम सब मिलकर

संडे का इंतज़ार करते

उस दिन मेहमानों की लाइन

लग जाती

चाय बनाकर खूब पिलाती

संडे हो या।


हम सब ने एक प्लान बनाया

संडे के दिन बाहर जाना

तब तक अंकल जी का फोन

आया

बेटे तुम सब कहीं न जाना

संडे हो या।


फोन सुनते सबने मुँह फुलाया

अब लो अब तो कहीं न जाना

आ रहे हैं चाचा जी

दिन भर करो मेहमान नवाजी।


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