सियासत का कुहरा
सियासत का कुहरा
हर तरफ कुहरा घना है
मौसम का मिजाज ,
आजकल कुछ ऐसा बना है।
कुछ सियासी चादरें
इतनी गरम हैं।
सर्द का शायद भरम है।
दूर करने की करो
जितनी ही कोशिश
पास से जाती नहीं ये बेशरम है।
भाषणों में जोश भरने
का तरीका हो गया काफी पुराना
अब लतीफे और जुमले
हो गए काफी पुराने
अब नए नुस्खे पड़ेंगे आजमाने,
रुठनेवालों को कैसे है मनाना
नासमझ को किस तरह से
अपने खेमे में है मिलाना।
हर तज़ुर्बे आजमाइश करने होंगे।
कुछ सगूफे छोड़कर फिर मौन होकर
देखिये अग्रिम नज़ारा।
हो अगर विध्वंस तो मौन रहिये
शब्द शस्त्रों को धैर्य से संचिये
और फिर बन जाइये
जनता हितैषी।
काल जब आये उचित तब
शब्द शस्त्रों को निकालें
और फिर उनको चलाएं धीरे धीरे
थोड़ा सा उसमे नमक मिर्ची मिलाकर
शब्द शस्त्रों को मसालेदार कर के
फिर चलाएं जोश और
विश्वास से।
लोक प्रलोभन के तड़के लगाकर
हौले हौले सेंकिए अपनी सियासत
चमक जाएगी सियासत।
सच यही है
इन सियासी रण में
प्यारा देश अपना जल रहा है
और बुझाने की होती है
जिससे आशा
वे ही उसमें घी की गागर उलट देते।
राष्ट्र प्रेम शब्द बनकर
रह गया है।
दूसरों को बस बताने और
समझाने के खातिर।