सिर्फ... कान
सिर्फ... कान
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कभी कभी लगता है.....
न हाथ है
न पांव है
बस सुनने के लिए
सिर्फ सुनने के लिए
बस सुने जाने के लिए
बस कान ,
सिर्फ कान है।
सबकी
अपनी -अपनी,
दुनिया है।
आसपास रहने वाले,
सब अपनी
अपनी
दुनियां में खोए हैं।
सबके अपने रास्ते हैं,
सबकी अपनी मंजिलें हैं,
सबकी अपनी बातें है,
सबकी अपनी राय है।
सबकी जुबानें हैं।
सबकी सुनता हूँ।
कभी लगता है....
बस यही......एक काम है।
टटोल कर देखता हूँ।
क्या सच में.....
सिर्फ कान.....
सिर्फ कान ..........है।