शास्त्रों में वर्णित
शास्त्रों में वर्णित
शास्त्रों में होता जिनका वर्णन, करने वाले तो वही कर्म है
धर्म के होते चरण, जिनमें दया, क्षमा, तप चौथा अपना कर्म है||
काम, क्रोध, लोभ से यारा, नष्ट हो चुके उसके तीनों पग है
नर्क द्वार तक जो ले जाते, बुरे अपने सभी कर्म है||
यश, ऐश्वर्य, धन नष्ट हो जाते, अधर्म से पूर्ण जिसके कर्म है
जाल बुनता वो ऐसा भयंकर, वंश होता पूर्ण विनाश है||
लोभ, कलह और चोरी कराता, शीश उठाता फिर, पाखंड है
सज्जन वहाँ पर रह न सकते, जहाँ होते ये सभी संग है||
अधर्म का बंधु कलियुग होता, वैश्यालय, जुआँ, मधपान सब संग
श्मशान उसका निवास स्थान, जो सीधा-सीधा पाप का द्वार है||
आत्मा का परमात्मा से मिलन कराते, सत, तप शुद्ध जिसके कर्म है
नश्वर देह को छोड़ना होता, बस, यही वक़्त की सबसे माँग है||